गर्मियों की छुट्टियों का सही उपयोग

जब से गर्मी की छुट्टियां  शुरू हुई है अभिनव और कर्ण को दिन भर घर में बंद रहना पड़ता है। टीवी पर कार्टून देख-देखकर भी उनका जी भर गया था। अपनी बोरियत दूर करने के लिए दोनों दिन भर घर में धमाचौकड़ी मचाते। जब उनकी मां उन्हे डांटती तो उनका एक ही जवाब होता कि क्या करे हम घर में बैठे-बैठे बोर हो रहे है? आप बाहर भी तो नहीं जाने जाने देतीं।’

यह समस्या इन दोनों बच्चों की ही नहीं बल्कि इन जैसे हजारों बच्चों की है, जो हर साल गर्मियों की छुट्टियां आते ही बोर होना शुरू हो जाते है। ज्यादातर अभिभावक गर्मी की छुट्टियों में अपने बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने बाहर नहीं जा पाते। छुट्टीयों कहीं घूमने न जा पाने की वजह चाहे जो भी हो पर इससे होने वाली दिक्कतें बच्चों को ही झेलनी पड़ती है।

दूसरी तरफ कुछ बच्चे ऐसे भी होते है जिनके माता-पिता दोनों ही बहुत व्यस्त रहते है और उनके पास अपने बच्चों के लिए बिल्कुल वक्त नहीं होता। इसलिए वे अपने बच्चों को भी कई तरह की गतिविधियों में व्यस्त रखते है। ऐसे बच्चों के घर में सख्त अनुशासन और बिलकुल बंधी हुई दिनचर्या होती है, जिससे उन बच्चों के लिए छुट्िटयों और सामान्य दिनों में कोई फर्क नहीं रह जाता। उन्हे अपनी इस उबाऊ दिनचर्या से बोरियत होने लगी है।

कुछ अभिभावक ऐसे होते है जो इन छुट्टियों को सही तरीके से उपयोगी बनाना चाहते है। वे चाहते हैं कि बच्चों की छुट्टियां आने से पहले वे उनके लिए कुछ ऐसी योजना बनाकर चलें, जिससे उनके व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ उनके अवकाश का भी सही इस्तेमाल हो।

यहां माता-पिता को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की जरूरत है। गर्मियों की छुट्टियां ही वह समय है जब माता-पिता अपना बच्चों के साथ पूरा वक्त बिताकर उनके साथ अपना रिश्ता मजबूत बना पाते है। यही सही समय होता है जब बच्चे कुछ नया सीख सकते है और परिवार के परिवेश में उनका सही विकास होता है। इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. अशुम गुप्ता कहती है, ‘जब लंबी छुट्टियां  शुरू होती है तो शुरू में दो-चार दिनों तक बच्चों को बहुत अच्छा लगता है पर धीरे-धीरे बच्चे बोर होने लगते है। आजकल ज्यादातर परिवारों में माता-पिता दोनों ही कामकाजी होते है, ऐसी स्थिति में उनके सामने यह समस्या होती है कि दो महीने तक वे अपने बच्चे को कहां रखें। जिन बच्चों की माताएं कामकाजी नहीं होतीं वे भी अपने बच्चों की शरारतों से तंग आकर उन्हे घर से कहीं बाहर भेजना चाहती है। इसलिए आजकल सभी बड़े शहरों में स्कूली बच्चों के लिए समर कैंप लगाए जाते है या कई ऐसी संस्थाएं होती है जो, जहा उन्हे पढ़ाई के अलावा दूसरी कलात्मक या रचनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाता है। जिससे बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है। पर जब बच्चे को इस बात का एहसास होता है कि उसे जबरदस्ती घर से बाहर भेजा जा रहा है तो ऐसी स्थिति में वह समर कैंप में कुछ नया सीखने के बजाय जिद्दी और उद्दंड हो जाता है। ऐसी समस्या से बचने के लिए सबसे जरूरी यह है कि जैसे ही छुट्टियां  शुरू हों माता-पिता अपने बच्चे के साथ बैठकर अपने घर के माहौल और अपने परिवार की बजट के मुताबिक छुट्िटयों की योजना बनाएं। इससे बच्चे को खुशी होगी कि उसकी राय को भी महत्व दिया जा रहा है।’

दिमाग को व्यस्त रखें

बच्चे ऊर्जा से भरे होते है। इस वजह से जब भी वे खाली होते है तो अपने इस असीमित ऊर्जा को खर्च करने के लिए वे तरह-तरह की शरारतें करते है। इसलिए गर्मी की छुट्िटयों में बच्चों की ऊर्जा का सही इस्तेमाल भर करना जरूरी है। इस संबंध में डॉ. गुप्ता आगे कहती है, बच्चों ने छुट्िटयों के पहले जो कुछ भी सीखा होता वह सब भूलने लगते है। हालांकि पढ़ाई का यह नुकसान स्थायी नहीं है, पर यह बात एकदम सच है कि अगर छुट्िटयों का सही इस्तेमाल न किया जाए तो बच्चों का दिमाग सुस्त हो जाता है।’

वसंत कुंज स्थित, दिल्ली पब्लिक स्कूल की शिक्षिका सुनीता नागपाल बताती है, ‘छुट्िटयों के बाद स्कूल खुलने पर बच्चे अपने क्लास वर्क में गणित और वर्तनी संबंधी गलतियां पहले की तुलना में ज्यादा करने लगते है। छुट्िटयों में भी बच्चों को पढ़ाई से एकदम दूर भी नहीं होना चाहिए। स्कूल से होमवर्क इसीलिए दिया जाता है कि बच्चे पढ़ाई के साथ जुड़े रहे। साथ ही, हम यह भी कोशिश करते हैं कि बच्चों को प्रोजेक्ट वर्क ज्यादा से ज्यादा दिए जाएं, उसे बच्चे बहुत उत्साह से करते है। इसके द्वारा उन्हे रचनात्मक ढंग से सोचने और समझने का अवसर भी मिलता है। जिन बच्चों ने छुट्टियां  का ज्यादा अच्छी तरह आनंद उठाया है और जो बच्चे बिना किसी निश्चित योजना के घर में खाली बैठे बोर होते रहते है, अगर दोनों तरह के बच्चों की तुलना की जाए तो यह स्पष्ट पता चलता है कि जिन बच्चों ने छुट्टियां अच्छी तरह गुजारी है वे ज्यादा उत्साहित होकर दोबारा अपनी पढ़ाई में जुट जाते है। दूसरी ओर घर पर रहकर बोर होने वाले बच्चे हमेशा सुस्त रहते हैं और पढ़ाई में रुचि भी कम हो जाती है।

आज अभिभावक सबसे ज्यादा इस बात को लेकर चिंतित रहते है कि उनका बच्चा पढ़ाई में पीछे न रहे। इसके लिए वे हर तरह के यत्‍‌न करने को हमेशा तैयार रहते है। कुछ एक तो ऐसे भी है जो पूरी छुट्टियां हर विषय के लिए अलग-अलग टयूशन रख अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेते है। पर ऐसे अभिभावक यह जानने की कोशिश नहीं करते कि सचमुच उनके बच्चे की जरूरतें क्या है? उसके प्रति आपके दायित्व क्या है?

यही वह समय है जब आपके बच्चे की क्षमता का सही इस्तेमाल हो सकता है। यह जरूरी नहीं है कि हॉबी क्लासेज या समर कैंप ज्वाइन करके ही बच्चा कुछ नया सीख सकता है। अप चाहे तो घर पर अपने साथ रख कर भी बच्चे को व्यावहारिक जीवन से जुड़ी ऐसी बातें सिखा सकती है, जो आमतौर पर बच्चों को मालूम नहीं होतीं। आप उन्हे अपने साथ बाजार लेकर जाएं और उन्हे अपने आप वजन करा कर चीजें खरीदना सिखाएं। वस्तुओं की कीमत का अंतर और वजन की तौल उनका गणित मजबूत करने में सहायक होगा। यदि आपके बच्चे की कला और चित्रकारी में रुचि है तो उसे अपने आप चित्र बनाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दें। इससे बच्चे खुद-ब-खुद कई तरह की ज्यामितिक आकृतियां बनाना भी सीख जाएंगे। बच्चों को एटलस देखना सिखाएं। इससे उन्हे विभिन्न देशों के भूगोल के बारे में अच्छी जानकारी मिलेगी। प्राय: सभी शहरों में ऐसे पुस्तकालय जरूर होते है, जो अवकाश के दिनों में बच्चों के पढ़ने के लिए नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराती है। बड़े बच्चों को लाइब्रेरी जाने के लिए प्रेरित करें। पढ़ना एक ऐसी अच्छी आदत है, जिससे हम जीवन भर कुछ न कुछ नया सीखते रहते है। बच्चे के व्यक्तित्व के विकास के लिए सिर्फ पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकें पढ़ना ही काफी नहीं है। बल्कि उसे अच्छा बाल-साहित्य और विज्ञान और सामान्य ज्ञान से जुड़ी रोचक और ज्ञानव‌र्द्धक पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए।

माता-पिता का यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चे की रुचि और योग्यता किस तरफ है। बच्चों तक यह संदेशा पहुंचाना कि माता-पिता उनसे चाहते क्या है बहुत आवश्यक है। यह सब बातचीत व व्यवहार से संभव है। बच्चों को कहीं भी यह लगना नहीं चाहिए कि माता-पिता की इच्छाओं को उन पर थोपा जा रहा है। ऐसी स्थिति में बच्चे काम से जी चुराने लगेंगे या उनकी रचनात्मक कार्यो से उनकी रुचि समाप्त हो जाएगी।

आपकी जिम्मेदारी

अभिभावकों को यह समझना पड़ेगा कि बच्चे अपनी रुचि और मेहनत के बिना कुछ नहीं सीख पाएंगे। खाली समय या छुट्टियां ही ऐसा समय है जब बच्चे अपनी रचनात्मकता से कुछ सीख सकते है। माता-पिता का यह क‌र्त्तव्य है कि वे छुट्िटयों में भी बच्चे को बहुत ज्यादा मनमानी न करने दें। अनुशासन बहुत जरूरी है। बच्चे के लिए कुछ नियम कायदे भी जरूर बनाएं ताकि वे सही रास्ते पर चलें। एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली अवनि मल्होत्रा अपने 7 साल के बेटे के साथ बाहर घूमना चाहती थीं पर समस्या यह थी कि उनके पति के पास समय नहीं था। अकेला बच्चा किसके साथ खेले। तब अवनि के मन में विचार आया कि क्यों न अपने किसी फैमिली फ्रेंड के दो बच्चों के साथ उसे घुमाने ले जाया जाए। उस दिन बच्चों ने खूब मौज मस्ती की। आज तक वह दिन बच्चों को याद है।

प्रमुखता मौज मस्ती की हो

पिकनिक पर जाना बाहर डिनर पर जाना, इनडोर गेम ऐसे बहुत से आसान तरीके है जो बच्चों और माता-पिता रिश्ते मजबूत करने में सहायक होते है, बच्चों की साल भर की स्कूल की व्यस्तता से छुटकारा दिलाने में भी मदद करते है। ये कुछ आसान प्रयोग है जो बच्चे की रचनात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ाते है। इन सबका बच्चों पर बहुत ही सकारात्मक असर पड़ता है। 5 से 12 वर्ष के बच्चों पर किए गए मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षण से यह साबित हो चुका है कि जो बच्चे पढ़ाई में होशियार है वे हर कार्य में रुचि रखते है खेलकूद में भाग लेते है, घर के कामों में भी सहयोग देते है, रचनात्मक गतिविधियों में भी भाग लेते है। दूसरी तरफ जो बच्चे पढ़ाई में बहुत होशियार नहीं तो वे काम से जी चुराकर सारा समय टीवी देखने और कंप्यूटर गेम खेलने में लगाते है। यह माता-पिता को चाहिए कि वे अपना समय बच्चों पर लगाएं। उन्हे बताएं कि मनोरंजन और मौज-मस्ती भी जीवन के लिए आवश्यक है पर यही सब कुछ नहीं है।

शिक्षिका सुनीता नागपाल आगे कहती है, छुट्टियों में बच्चों के लिए विभिन्न समर कैंपों और वर्कशॉप का आयोजन भी किया जाता है लेकिन उनमें बच्चे कम ही आते है। बच्चों का लाना ले जाना एक समस्या बन जाती है गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के आने-जाने की व्यवस्था स्कूल नहीं करवाता अभिभावकों के लिए समय पर छोड़ना और लेना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उनके पास समय की कमी होती है। अंजली पति की व्यस्तता को लेकर बहुत परेशान थी क्योंकि उसके बच्चों को पिता का साथ नही मिल रहा था। आखिर उसने एक हल निकाला। उसने दिन के भोजन के बाद बच्चों को सुलाना शुरू कर दिया। उसके बाद बच्चे रोज पिता के देर से आने पर जगे मिलते। बातचीत होती थी, देर तक समय बिताते थे। इससे दोनों को फायदा हुआ बच्चों को पिता की भावनाओं को समझने और उनके नजदीक आने का मौका मिला। बच्चों के साथ खेलकर पिता भी दिन भर की थकान को भूल जाते थे। एक छोटी सी आसान कोशिश ने जीवन की दिशा ही बदल दी।

अच्छी सोच पर बल दें

कई बार माता-पिता छुट्टियों में सिर्फ मौज मस्ती को बल देते है या कुछ ऐसे भी है जो चाहते है कि उनका बच्चा हर क्षेत्र में सबसे आगे हो। इसके लिए छुट्टियों से ज्यादा उपयुक्त समय उन्हे और कोई नहीं लगता। पर यह सब गलत है बच्चों को खुद को समझने का मौका दें और उन्हे स्वयं परिपक्व होने दें। छुट्टियों में बच्चे के अनुसार उसके लिए ही प्रोग्राम बनाएं न कि अपनी सोच उन पर लाद दें। बच्चे खुद जानें कि उन्हे अपना काम किस प्रकार करना है, दूसरों का ख्याल कैसे रखना है, छोटों की और जरूरतमंदों की मदद किस प्रकार करनी है। कभी-कभी बच्चों के द्वारा किए गए कामों की प्रशंसा भी करे जो उन्हे प्रोत्साहित करेगी। कभी-कभी उन्हे घर के कामों की जिम्मेदारी दें, रसोई के छोटे-छोटे कामों में बच्चे से मदद लें। बच्चों को बागवानी जैसे शौक भी होते है। जिन्हे इस तरीके की रुचियां है उन्हे अलग-अलग किस्म के बीच जाकर दें गमलों में लगाने दें पानी डालना खाद डालना खुरपी से गुड़ाई करना जैसी जिम्मेदारी उन पर छोड़े। बच्चे अपनी उगाई चीजों को विकसित होते देख प्रसन्न और संतुष्ट होते है।

यह कोशिश हम अभिभावकों को ही करनी होगी कि बच्चे अपनी जिम्मेदारियों का पालन सहज रूप से करें। उन्हे केवल यह बताएं कि इस निश्चित समय तक उन्हे ‘अपना काम समाप्त करना है। काम कैसे करना है, यह उन्हे ही तय करने दें। हां, यदि उन्हे किसी तरह की मदद चाहिए तो जरूर दें। कभी-कभी उनके द्वारा किए गए कामों में गलतियां भी होंगी, उसके लिए तैयार रहे। उन्हे डांटे फटकारे नहीं समझाएं। अपनी खुद की गलतियों से सीखने का मौका उन्हे दें।

सीखने की भावना बच्चों को आगे चलकर समर्थ बनने में सहयोग करती है। कठिनाइयों और तकलीफों से लड़ने की भावना उन्हे इसी समय से आनी चाहिए। दो महीने का लंबा अवकाश वह आदर्श समय है जब आप थोड़ी सी कोशिश करे तो बच्चों को सही दिशा दे सकती है। उनकी छुट्टियों का प्रोग्राम पहले से ही निश्चित करके रखें ताकि बच्चे समय का सदुपयोग कर अपने व्यक्तित्व को निखार सकें।